शुरुआती जीवन : यह बात 1972 की है जब जामनगर के एक छोटे से गांव में रहने वाले पोपटराम वीरानी जी ने प्राकृतिक विपदा के कारण खेती में हो रहे नुकसान के कारण अपनी जमीन ₹20000 में भेज दी और आए हुए पैसों को अपने तीन बेटों में यानी कि मेघाजीभाई, भिकूभाई भाई और चंदू भाई विरानी जी में बांट दिया। पैसे मिलते ही चंदू भाई अपने भाइयों के साथ राजकोट चले गए इस समय उनकी उम्र सिर्फ 15 साल थी, वहां जाकर उन्होंने कृषि उत्पाद और कृषि उपकरणोका व्यवसाय शुरू किया क्योंकि वह इस व्यवसाय में नए थे इस कारण सप्लायर ने उन्हें ज्यादा दम पर बेकार फर्टिलाइजर थमा दिए इस कारण उनका बहुत बड़ा नुकसान
हो गया और व्यवसाय 2 साल में ही बंद पड़ गया। उनके यहां हाल हो गए की उनके रूम का किराया जो कि सिर्फ ₹50 था वह भी दे नहीं सके जिस कारण उन्हें वहां से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि गांव में कुछ बचा नहीं था तो वह गांव में भी नहीं जा सकते थे उन्होंने शहर में नौकरी करने के बारे में सोचा लेकिन कम पढे लिखे होने के कारण उन्हें अच्छी नौकरी न मिल सकी। चंदू भाई वहां के astron नमक सिनेमा हॉल में ₹90 महीने से काम करने लगे, इस दौरान कभी भी फिल्मों के पोस्टर चिपकाने का काम करते तो कभी टिकट चेक करनेका काम भी कर देते। सिनेमा हॉल के मालिक को चंदू भाई बहुत ज्यादा मेहनत देखें जिस कारण उन्होंने सिनेमा हॉल के कैंटीन का ठेका चंदू भाई को दे दिया, शुरुआती दिनों चंदू भाई कैंटीन में मसाला पाव बेचा करते थे मसाला पावकी स्वाद बहुत अच्छा था जिस कारण मसाला पाव की बिक्री बढ़ गई, तो चंदूभाई ने हाथ बढ़ाने के लिए उन्होंने गांव से अपने परिवार को भी बुला लिया सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन मसाला भाव के साथ एक समस्या थी जब भी मसाला पाव बच जाते तो वह 1 दिन के बाद खराब हो जाते थे जिस कारन
चंदू भाई को बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा उन्होंने इसके
समाधान के तौर पर कैंटीन में चिप्स बेचने का निर्णय लिया
बालाजी वेफर्स की शुरुआत की कहानी :
चंदू भाई सप्लायर चिप्स लेते और कैंटीन में बेच देते थे लेकिन
इसमें भी एक समस्या थी सप्लायर कभी टाइम पर चिप्स
सप्लाई ही नहीं कर रहा था, जिस कारण चंदू भाई को फिर से
नुकसान होने लगा उन्होंने कई सप्लायर को बदला लेकिन समस्या जैसे की वैसी बनी रही। यहां से बालाजी वेफर्स की शुरुआत होती है यह बात 1982 की है जब चंदू भाई अब से खुद अपने हाथों से चिप्स बनाने का निर्णय लेते हैं। वे अपने घर के बरामदे में ही चिप्स बनाना शुरू कर देते हैं क्योंकि वही खुद ही से बना रहे थे तो टेस्ट और क्वालिटी टीम बहुत अच्छे देने लगे जिस कारण चिप्स लोगों को बहुत ज्यादा पसंद आने लगे। अब चंदू भाई इसे और भी सिनेमा हॉल में बेचने लगे, जब डिमांड बड़ी तू चंदू भाई के परिवार वालों ने इसमें हाथ बताया और चंदू भाई इसे और भी जगह प्रोवाइड करने लगे उनके क्वालिटी और सर्विस के वजह से एक ऐसा भी दिन आया की सभी लोग मिलकर भी दिन-रात चिप्स बना रहे थे फिर भी डिमांड पूरी नहीं हो पा रही थी। अब वह चाहती तो यह सोचकर रख सकते थे सब कुछ अच्छा चल रहा है लेकिन हमें उनसे यह बात सीखनी चाहिए कि उन्होंने और भी आगे जाने का सोचा, डिमांड पूरी करने के लिए वह मशीन खरीदना चाहते थे लेकिन जब उन्होंने देखा की मां मशीन बहुत ज्यादा महंगी है। तो उन्होंने अपने दिमाग का अच्छे से इस्तेमाल करते हुए मशीन को बारीकी से समझा और मार्केट से पूर्वी खरे के खुदही मशीन बना डाली। मशीन बहुत अच्छे से चल पड़ी और और वे डिमांड पूरी करने लगे। यह बात 1984 की है जब चंदू भाई ने देखा कि मार्केट में उनके जैसे और भी चिप्स के निर्माता है और यह उनसे अलग दिखना चाहते थे अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे जिस कारण उन्होंने अपनी व्यवसाय को बालाजी वेफर्स नाम दिया। वह और भी आगे
बढ़ते गए आगे चलकर 1992 में उन्होंने अपनी कंपनी बालाजी वेफर्स प्राइवेट लिमिटेड को रजिस्टर किया । अब चंदू भाई की बालाजी वेफर्स उनके सूझबूझ और कुछ स्ट्रैटेजिक के वजह से जो हम आखरी में जाने वाले हैं वह दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरीके करने लगे। 2006 आते-आते उनकी गुजरात के मार्केट हिस्सेदारी 90% हो गई थी। जैसे-जैसे बालाजी वेफर्स की मार्केट में हिस्सेदारी बढ़ती रही इस तरह लेस कंपनी की मार्केट में हिस्सेदारी कमरा हो रही थी। जिस कारन 2011 में पेप्सी को जो लेस को चलती है
उसने फ्रस्ट्रेशन में आकर उन पर यह कहते हुए कैसे कर दिया कि उन्होंने उनकी डिजाइन कॉपी की है और वह जीत भी गए, जिस कारन बालाजी को अपना डिजाइन चेंज करना पड़ा लेकिन बालाजी कंपनी के विकास में कोई बदलाव नहीं आया वह और भी आगे बढ़ने लगी इस दौरान उन्हें 4000 करोड़ में इसे बेचने का ऑफर भी है लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी को बेचा नहीं क्योंकि वह अपनी कंपनी को अपने बच्चों की तरह मानती है। आज 2024 में उनके कंपनी की वैल्यूएशन 5000 करोड़ से भी ज्यादा है और वह भारत के दूसरे सबसे बड़े वेपर्स के निर्माता है जिसका रन इकोनॉमिक्स टाइम्स आफ इंडिया ने उन्हें "सुल्तान का वेफर्स" का नाम दिया। यह कहानी है बालाजी वेफर्स और उनके मलिक चंदू भाई वीरानी जी की।
स्ट्रेटर्जिस जिस कारण वह हजारों करोड़ की कंपनी बना
पाए . टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: जब दुनिया हाथों से चिप्स
१ बना रही थी उन्होंने मशीन का इस्तेमाल किया, वह मानते थे की मशीन का इन्वेस्टमेंट दुनिया का सबसे बड़ा इन्वेस्टमेंट है, एक बार पैसा लगा दो तो बिना किसी परेशानी के दिन भर काम करती रहेगी। उन्होंने अपनी उचित उत्पादन के लिए गुजरात के राजकोट वलसाड और वडोदरा यहां पर तीन प्लांट लगाए हैं और MP के इंदौर में एक प्लांट लगाया है। २. लोकल स्वाद पर ध्यान देना जब प्रोडक्ट चलने लगे तो उनके यहां बात समझ में आएगी एक ही प्रोडक्ट के दम पर
और आगे बढ़ नहीं सकते इस कारण उन्होंने और भी प्रकार के प्रोडक्ट जैसे की नमकीन, विदेशी खाद्य पदार्थ और भी कई प्रकार के प्रोडक्ट लॉन्च किया, आज उनके पास 50 से भी ज्यादा प्रकार के प्रोडक्ट है जो कि इसे हर एक का पसंदीदा बनता है।
३. ग्राहक को प्राथमिकता देना: उन्होंने अपने ग्राहकों को प्रथम माना है और इसलिए उन्होंने ग्राहक को सबसे अच्छी क्वालिटी और सर्विस देते हैं और उनका फीडबैक भी लेते हैं जिसके कारण वह और भी आगे बढ़ सके।
यहां वह स्टेटस हे जिस वजह से चंदू भाई अपनी बिजनेस को
इतना बड़ा कर पाए।
Conclusion : इस बायोग्राफी में अपने चंदू भाई की शुरुआती दिनों की चुनौतियां और उनके इतने बड़े व्यक्ति बनने तक के सफर के बारे में जाना। इस कहानी से हमें यह बात समझ में आती है की मेहनत करने से सफलता कदम चूमती ही चूमती है, सलामी चंदू भाई के इस जज्बे को। धन्यवाद
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