"Journey of Vision and Innovation: The Story of K. M. Mammen Mappillai, Founder of MRF"
About biography: यह कहानी ऐसे व्यक्ति की है जिसने एक ऐसे कंपनी की नींव रखी थी जिसकी आज की कीमत 55000 करोड़ से भी ज्यादा की है। यह कहानी है के. एम. मम्मेंन मपिल्लई जीकी जिनको MRF के निर्माता के रूप में जाना जाता है। आप इसे पढ़ कर उनके शुरुआती जीवन से लेकर इतना सफल बनने तक के सफर के बारे में जान पाएंगे,और यह भी जान पाएंगे की कैसे उन्होंने कई समस्याओका सामना करके देश की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी बनाई।
शुरुआती जीवन: के.एम. मम्मेंन मपिल्लई जीकी कहानी शुरुआत आजादी से पहले से शुरू होती है, जब उनका जन्म दक्षिण भारत के एक समृद्ध क्रिश्चियन परिवार में हुआ था, उनके पिताजी एक छोटे से बैंक के मालिक थे और साथी एक लोकल अखबार भी चलाते थे। जिसमें कि वहां अंग्रेजी सरकार के विरोध में बहुत कुछ लिखा करते थे, जिस कारण कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है, और उनकी संपत्ति अंग्रेजों द्वारा उनसे ले ली जाती है। इस समय वहां मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ रहे थे। क्योंकि अब एक बहुत बड़ा आर्थिक संकट उनके परिवार के सामने आया था, जिस कारण घर में हाथ बटाने के लिए उन्होंने गुब्बारे भी बेच। वहां बस स्टॉप रेलवे स्टेशन और ऐसे ही कई जगह पर घूम-घूम कर गुब्बारे बेचा करते थे। वहां बचपन से ही बड़ा सोचने से कभी नहीं डरते थे, वह जीवन में कुछ बड़ा करने की चाहत रखने वाले व्यक्ति थे।
ऐसे ही एक दिन उन्हें यह विचार आया कि वह गुब्बारे तो बेच रहे हैं लेकिन अगर वह गुब्बारो के निर्माता बन जाए तो और भी ज्यादा कमाई की जा सकती है, और इसी तरह साल 1946 में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर गुब्बारों के निर्माण का काम शुरू किया। क्योंकि गुब्बारे भी रबर से ही बनते हैं, और खिलौने भी रबर से ही बना करते थे, तो उन्होंने साल 1949 से खिलौनों को बनाना भी शुरू कर दिया। अब उनके पास अच्छा पैसा आने लगा था, लेकिन उनको एक बड़े मौके की तलाश थी।
ट्रेड रबर के व्यवसाय में सफलता :
एक समय की बात है, जब मम्मेंन अपने एक रिश्तेदार से मिले जो की पुराने घिसे हुए टायर के ऊपर रबड़ की परत (ट्रेड रबर) लगाकर उन्हें ठीक करने का व्यवसाय किया करते थे। लेकिन जो रबड़ की परत टायर के ऊपर लगा करती थी, जिसे की ट्रेड रबर कहा जाता है, उसके साथ एक समस्या थी, विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित यहां ट्रेड रबर कभी भी अच्छा क्वालिटी का नहीं हुआ करता था। और इसमें मम्मेंन को व्यवसाय का अवसर दिखा, और साल 1952 से खुद अच्छे क्वालिटी के ट्रेड रबर के निर्माण का काम शुरू किया, क्योंकि उनके द्वारा निर्मित ट्रेड रबड़ की क्वालिटी बहुत ज्यादा अच्छी थी, जिस कारण वहां बहुत ही ज्यादा तेजीके साथ आगे बढ़ने लगे, और चार साल में यानिकी साल 1956 में भारतीय बाजार में 50% की हिस्सेदारी बना ली, जोकि बहुत बड़ी बात थी। जिस कारण कई विदेशी कंपनियों को जो की ट्रेड रबर बनाया करती थी उन्हें भारतीय बाजार छोड़कर जाना पड़ा। अब वह इस ट्रेड रबर के व्यवसाय में सफल हो चुके थे। लेकिन मम्मेन यहां पर रुकने वालों में से नहीं थे
STORY OF MRF :
यह बात साल 1961 की है, क्योंकि वह ट्रेड रबर तो बना ही रहे थे, तो उन्हें यह विचार आया की क्यों ना पूरा टायर ही बनाया जाए। और यह निर्णय उनके व्यवसाय के लिए मिल का पत्थर साबित हुआ। यहां से ही एमआरएफ टायर एंड रबर (MRF Tire and rubber) कंपनी की शुरुआत होती है। ट्रेड रबर बनाने के वर्षों के अनुभव के कारण, टायर बनाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। लेकिन वहां जानते थे कि अच्छे क्वालिटी के टायर बनाने के लिए उन्हें किसी विदेशी कंपनी के साथ तकनीकी सहयोग की जरूरत है। जिसके लिए वह कई विदेशी कंपनियों के पास गए, उनसे बात की पर उनकी बात मेंसफील्ड के साथ बनी। उन्होंने उनके साथ तकनीकी साझेदारी की, और साल 1961 से मेंसफील्ड के तकनीक से उन्होंने टायर बनाकर बेचने की प्रक्रिया शुरू की। इस समय उनका मुकाबला फायरस्टोन डेनलॉक और गुडईयर जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों से था जिनका राज पूरे भारतीय टायर बाजार हुआ करता था।
मेंसफील्ड के तकनिक से बने टायर विदेशी सड़कों के लिए तो उपयुक्त थे, लेकिन वह भारतीय सड़कों के लिए उपयुक्त नहीं थे जो की एक बहुत बड़ी समस्या थी। जिसे देखते हुए विदेशी कंपनियों ने उनकी बहुत ज्यादा आलोचना की। ओ कहा करते थे कि भारतीय कंपनियां कभी भी टायर बना नहीं सकती। लेकिन मम्मेन ने उन्हें गलत साबित करने का निर्धारण अपने मन में कर लिया था, और भारतीय रास्तों के लिए उपयुक्त टायर बनाने के लिए उन्होंने साल 1963 में तिरुवोटियार में रबर रिसर्च सेंटर की शुरुआत की, और ऐसा टायर बना भी लिया। अब उन्हें जरूरत थी विज्ञापनों की जिससे कि लोग उन्हें जाने और उनके टायरों को खरीदे। जिसके लिए उन्होंने ॲलिक पदमसी जिन्हें की भारतीय विज्ञापनों के जनक के रूप में जाना जाता है, उन्हें काम पर लगा दिया। ॲलिक ट्रक ड्राइवर के बीच में गए और उनसे जाना कि उन्हें किस तरह के टायर चाहिए, जिसे देखते हुए ॲलिक जीने ऐसा टीवी विज्ञापन बनाया कि जो बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुआ और इसके साथी उनके टायर की बिक्री और भी ज्यादा बढ़ गई।
मार्केटिंग, रिसर्च और क्वालिटी के दम पर, ग्राहक को आकर्षित करने में उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली थी। साल 1967 आते-आते उन्होंने भारतीय बाजार में एक अच्छी हिस्सेदारी प्राप्त करने के बाद वह विदेशों में भी मेंसफिल्ड के नाम से टायर बेचने लगे थे। वह पहली भारतीय कंपनी बनी जिसने अमेरिका को अपना माल बेचा। पहले वह सिर्फ बस और ट्रैकों के लिए ही टायर बनाया करते थे। साल 1970 आते-आते भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर बहुत ज्यादा बढ़ गया था, भारत की सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ गई थी और टायर की मांग भी बढ़ गई थी जिस कारण मम्मेन जी ने केरल के कोट्टायम में अपना दूसरा प्लांट लगाया।
यह बात 1973 की है जब उन्होंने नायलॉन टायर विकसित कर लिया था, जो कि सस्ता टिकाऊ और भारतीय रास्तों के लिए भी उपयुक्त था जिस कारण नायलॉन टायर ग्राहकों की पहली पसंद बन गया और उसने पूरे भारत में धूम मचा दी थी।
साल 1979 आते-आते उनके मेंसफिल्ड के साथ रिश्ते बिगड़ने लगे थे, जिस कारण वह आगे चलकर अलग हो गए, और मम्मेंन जी ने अपनी कंपनी का नाम मेंसफिल्ड से बदलकर मद्रास रबर फैक्ट्री (MRF) कर दिया। वह विदेश में भी बहुत ज्यादा फैल गए थे, उन्होंने अपनी कंपनी में बहुतसे बदलाव किये जिस कारण वह और भी आगे बढ़ सके।
साल 1988 में भारत में मारुति 800 MRF के टायर के साथ ही लॉन्च हुई, और बाद में बजाज स्कूटर भी MRF के टायर के साथ लांच हुई, ऐसे ही आगे आने वाली हर गाड़ी MRF के ही टायर के साथ लॉन्च होने लगी थी।
वह अच्छी तरह से जानते थे कि एक ही चीज पर निर्भर रहना उनके लिए हानिकारक हो सकता है, जिस कारण साल 1989 में HASPRO जो कि विदेशी खिलौना की उत्पादक कंपनी है उनके साथ साझेदारी करके खिलौने की निर्मिती फिर से शुरू कर दी, और ऐसे ही कई कंपनियों के साथ साझेदारी करके वहां पेंट और कन्वेयर बेल्ट जैसे कई चीज बनाते हैं।
साल 1993 में को मम्मेंन मपिल्लई जी को पद्मश्री सम्मान मिला यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह दक्षिण भारत के पहले उद्योगपति थे। वह भारत के सबसे बड़े टायर निर्माता बने और वह 75 से भी ज्यादा देशों में अपना टायर बेचते हैं। लेकिन साल 2003 में 80 साल की उम्र में वहां हम में से चले गए। आज उनकी कंपनी हर तरह के वाहन के लिए टायर बनती है। साल 2008 में एमआरएफ ने भारतीय वायु सेवा के सुखोई विमान के लिए भी टायर बनाएं। पहली बार साल 2007 में MRF ने एक अरब अमेरिकी डॉलर यानी 7500 करोड़ का कारोबार करके रिकॉर्ड बनाया था। अगले चार साल में कंपनी का कारोबार बढ़कर 4 गुना तक पहुंच गया। आज एमआरएफ की कीमत 55000 करोड रुपए से भी ज्यादा की है। यह कहानी है के. एम. मम्मेंन मपिल्लई जी की
कंक्लुजन:
इसमें हमने जाना कि किस तरह के.एम. मम्मेंन मपिल्लई जी ने कई समस्याओं का सामना करके भारत की सबसे बड़ी टायर निर्माता कंपनी बनाई। यह कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि किस तरह ऊंची सोच और हमारी मेहनत हमें सफलता की शिखर पर पहुंचा देती है। धन्यवाद...
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साथ ही आपको इसमें कई सफल कंपनी योक केस स्टडी भी पढ़ने मिलेंगे जिससे उनके इतने सफल बनने का राज आप जान पाएंगे । जिसे आप अपने व्यवसाय में इस्तेमाल कर उसे सफल बना सकते हैं
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