Cyrus Poonawalla
साइरस पूनावाला भारत के 10 सबसे अमीर और सफल व्यक्तियों से है। जो की साइरस पूनावाला ग्रुप के मालिक, और दुनिया के सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के संस्थापक है, जिस कारण उन्हें वैक्सीन किंग के नाम से जाना जाता है। जो नाम खुद बिल गेट्स ने उन्हें दिया था। इस जीवन में आप जान पाएंगे कि कैसे वह घोड़े की रेस लगाते- लगाते इतनी बड़ी व्यक्ति बन पाए।
शुरुआती जीवन और पढ़ाई
उनका जन्म साल 1941 में पुणे के एक समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था। जो की पूनावाला स्टड फार्म के मालिक थे। उनके पिता घोड़े का व्यापार किया करते थे, जिस कारण उनके पास बहुत सारी जमीन भी हुआ करती थी। क्योंकि उसे समय अमीर और बड़े-बड़े लोग घोड़े की रेस में बहुत सारा पैसा लगाया करते थे, जिस कारण साथही में वह घोड़े की रेस भी किया करते थे।
इन्ही सब कारणों की वजह से, उन्हें उनके पिता ने कभी भी पैसों की कमी महसूस नहीं होने दी। जिस कारण वह बड़े अच्छी तरह से अपनी स्कूल की पढ़ाई पुणे के बिशप स्कूल से पूरी कर पाए। जीसके बाद उन्होंने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई ब्रिहम महाराष्ट्र कॉलेज ऑफ कॉमर्स से पूरी की ।
व्यावसायिक जीवन की शुरुआत
बीस साल की उम्र में अपने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह अपने पिता के स्टड फार्म के लिए काम करने लगते हैं। जिस दौरान उनके फार्म में जब भी किसी घोड़े की उम्र ज्यादा हो जाती थी, या फिर उसकी रेस में दौड़ने की क्षमता खत्म हो जाती थी, तब वह उसे घोड़े को भारत सरकार के हफ़कीन इंस्टिट्यूट (Haffkin institute) को दान में दिया करती थे। बाद में वहां के डॉक्टर और साइंटिस्ट उसे घोड़े के खून से सीरम निकालकर कई प्रकार के वैक्सीन और दवाइयां बनाया करती थे। जिस दौरान वहां पर उनके कई दोस्त भी बन जाते हैं।
शुरुआत से ही उनकी सोच बहुत ही ऊंची होने के कारण, वह अपने पिता के स्टड फार्म को और भी उच्चे स्तर पर ले जाने के लिए काम कर रहे थे। लेकिन तब तक भारत में घोड़े की रेस का जमाना खत्म सा हो गया था, और वह यह बात जल्द ही समझ जाती है। जिसके बाद वह भारत में घोड़े के रेस के सतही उनके व्यवसाय का कोई भी भविष्य ना होने का समझ जाते हैं।
इन्हीं सब की वजह से अब वह कोई दूसरा व्यवसाय करना चाहते थे। जिस दौरान वह अपने कुछ कॉलेज के दोस्तों के साथ मिलकर कार में मोडिफिकेशन करके, अमीर व्यक्तियों को बेचने का व्यवसाय शुरू करते हैं। लेकिन इस व्यवसाय को जितने पैसे की आवश्यकता थी, उतने पैसे ना होने के कारण, और अन्य कुछ कारणों की वजह से उनका यह व्यवसाय जल्द ही बंद हो जाता है।
वह इन सब बातों से आगे निकलना चाहते थे। जिस कारण वह ऐसे व्यवसाय के बारे में सोचने लगते हैं, जिससे कि लोगों की मदद हो सके।
Beginning from accident
एक दिन की बात है। जब वह अपने स्टार्ट फार्म पर आते हैं जहां पर वह देखते हैं कि उनका एक बड़ी शानदार घोड़ा जमीन पर पड़ा हुआ है। देखने पर पता चलता है कि उसको किसी जहरीले सांप ने काट लिया है। जिसे बचाने के लिए वह हाफ़किन इंस्टिट्यूट में कॉल करते हैं, और उन्हें कैसे भी करके अपने घोड़े को बचाने के लिए कहते हैं। लेकिन वहां के डॉक्टर उनके घोड़े को बचाने के लिए असमर्थ होने की बात कहते हैं। जीसके कुछ वक्त बाद उनका घोड़ा दम तोड़ देता है।
वह अपने खास और प्रिया घोड़े के निधन से बहुत दुखी होते हैं, और साथी में उनके हबकिन इंस्टिट्यूट को डेढ़ सौ से भी अधिक घोड़े को दान में देने के बावजूद उनसे जरा सी भी मदद ना मिलने के कारण उन्हें बुरा भी लगता है।
इसी दौरान उन्हें उनके हैफ़किन इंस्टिट्यूट में काम कर रहे दोस्त से वैक्सीन की बढ़ती मांग और उसके बहुत ही ज्यादा कीमतों के बारे में पता चलता है इसके बाद यह बड़े आश्चर्य की बात है कि उनके पास इस क्षेत्र की जरा से भी जानकारी न होने के बावजूद भी उनके पास कई सारे घोड़े होने के कारण उनसे आसानी से सीरम प्राप्त करके खुद से सस्ते वैक्सीन बनाने का विचार उन्हें आता है जिससे कि हर व्यक्ति को कम कीमत में वैक्सीन मिल सके। वैक्सीन बनाने की और इस क्षेत्र की जरा भी जानकारी ना होने के कारण सबसे पहले वह इस बारे में जानकारी जुटाना लगते हैं
साल 1966 आते-आते वह उनके व्यवसाय के लिए आवश्यक उनकी जानकारी जुटा लेते हैं जिसके बाद वह हाफकिन इंस्टिट्यूट से 10 डॉक्टर और साइंटिस्ट को अपनी कंपनी में लिए काम करने के लिए आमंत्रित करते हैं जो कि वह स्वीकार करते हैं जिसके बाद वह साल 1966 में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया serum institute of india (sii) की नीव रखते हैं और इसी तरह एक हादसे से इस कंपनी की शुरुआत होती है
Serum institute of India
व्यवसाय के शुरुआती दिनों से ही वह अपने कंपनी के लिए दिन-रात मेहनत करने लगते हैं इसके फल स्वरुप वह जल्दी ही एंटी टिटनेस वैक्सीन को विकसित कर लेते जिसका उन दिनों भारत चीन युद्ध और सरकारी दवाखाना में मुफ्त टीकाकरण अभियान के कारण बहुत ज्यादा मांग चल रही थी जिस कारण भारत सरकार उन्हें बहुत ही ज्यादा मदद करती है और बहुत ज्यादा वैक्सीन के लिए आर्डर भी देती है।
जिस कारण उनका यह व्यवसाय बड़ी तेजी के साथ चल पड़ता है
इसके बाद वह और भी कई प्रकार के वैक्सीन को विकसित करने में लग जाते हैं जिसके लिए वह अपने डॉक्टर और साइंटिस्ट के टीम का और भी विस्तार करते हैं।
इसके बाद वह खसरा (measlels), टीबी,बच्चों को लगने वाली कई प्रकारकी वैक्सीन, सांप काटने पर लगने वाले एंटी स्नेक वेनम और ऐसे ही कई प्रकार के वैक्सीन को विकसित कर लेते हैं इसके कुछ साल बाद वह पोलियो और रेबीज के वैक्सीन को भी विकसित करते हैं।
यह बात साल 1972 की है जब उनको को पता चलता है की मौखिक टीकाकरण जिसमें की टीका मुंह से लिया जाता है और वह आसान भी होता है, जिसे करने का अधिकार सिर्फ कुछ विकसित देशों ने अपने पास रखा है। बाकी सभी देशों को इंजेक्शन के मदद से ही टीकाकरण पढ़ने करना पड़ता है। जिसमें से भारत भी एक देश था। जिसके बाद वह भारत में मौखिक टीकाकरण के अनुमति प्राप्त करने के लिए WHO और US को पत्र लिखने लगते हैं, और भारत में मौखिक वैक्सीनेशन की अनुमति प्राप्त करने के लिए कई बार की कोशिश करते हैं। दो साल के प्रयत्नों के बाद यानी कि साल 1974 में हो भारत को मौखिक टीकाकरण के लिए अनुमति दे देता है
आज के समय भारत में उनके ही कारण पोलियो का टीकाकरण मुंह से लिया जाता है, नहीं तो हमें पोलियो का टीका इंजेक्शन के मदद से लेना पड़ता था।
एक्सपेंशन विस्तार
उनके शुरुआत से ही दुनिया को सबसे सस्ते और किफायती वेक्सीन दिलाने की सोच के कारण, उन्होंने दुनिया में सबसे सस्ते वैक्सीन का निर्माण किया, जिसके लिए उन्होंने अपनी कंपनी का लाभ सबसे कम रखा। बावजूद इसके उन्होंने अपने वैक्सीन की गुणवत्ता पर जरा सा भी असर पढ़ने नहीं दिया, और दुनिया में सबसे किफायती और अच्छे वैक्सीन का निर्माण किया। जिसकी जरूरत पूरी दुनिया में थी। जिस कारण WHO उन्हें 1994 में अपने वैक्सीन कि निर्यात दुनिया भर में करने की अनुमति देता है।
इसके बाद उन्हें विदेशों से बड़े-बड़े ऑर्डर मिलने लगते हैं। साल 1998 आते-आते वह दुनिया के 100 से भी अधिक देशों में अपने वैक्सीन का निर्यात करने लगते हैं, और साल 2000 आते आते दुनिया के बारे में हर दो में से एक बच्चे को उनके द्वारा निर्मित वैक्सीन लगायी जा रहा थी।
और यही हाल कोरोना के वैक्सीनेशन के वक्त भी बना रहा। जब उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर, दुनिया की सबसे पहले कोरोनावायरस के खिलाफ काम करने वाली, कोविशील्ड/एस्ट्रेजनेका (COVISHIELD) वैक्सीन का निर्माण किया था।
जिस वक्त वह बहुत ही बड़ा रिस्क लेकर WHO से वैक्सीन की अनुमति मिलने के पहले तक का निर्माण शुरू कर देते हैं। जिससे की अनुमति मिलने पर वह दुनिया में सबसे आगे रहे। लेकिन अनुमति न मिलने पर उनका पूरा स्टॉक पढ़ा रह सकता था,और उनके करोड़ों का नुकसान हो सकता था। लेकिन फिर भी वह इस रिस्क को लेते हैं।
सितंबर 2020 तक वह 4 से 5 करोड़ टीकी का निर्माण कर लेते हैं। जो की दुनिया भर में कोई भी कर नहीं रहा था, आगे WHO से उन्हें टीकाकरण के लिए अनुमति दे दी जाती है। जहां पर बाकी कंपनियां अपने तक को बड़ी महंगी दम पर बाजार में उतरती है। वही सिरम इंस्टीट्यूट सिर्फ दो डॉलर में अपने वैक्सीन को लांच कर देता है।
किफायती और पहले ही वैक्सीन का निर्माण शुरू करने के कारण उनकी मांग पूरी दुनिया में बढ़ जाती है, और वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा वैक्सीन की बिक्री करते हैं, और सीरम इंस्टिट्यूट के कारण ही भारत में तेजी के साथ कोरोना के खिलाफ टीकाकरण हो पाया और भारत कोरोना मुक्त हो पाया है।
आज के समय वह दुनिया भर में सबसे ज्यादा बच्चों के लिए इस्तेमाल होने वाले वैक्सीन का निर्माण करते हैं।
साल 2014 में भारत को संपूर्ण रूप से पोलियो मुक्त घोषित कर दिया गया। जिसमें साइरस पूनावाला और उनके सिरम इंस्टीट्यूट का बहुत बड़ा योगदान है।
आज के समय सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया दुनिया भर में 170 से भी अधिक देशों में अपने वैक्सीन का निर्यात करते हैं। इन्हीं सब कानों की वजह से वह दुनिया के सबसे बड़े कंपनी वैक्सीन निर्माता कंपनी बन पाए।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि आज उनके ही बदौलत, दुनिया भर में भारत को वैक्सीन कैपिटल कहा जाता है।
समाजसेवा (philanthropy)
साइरस पूनावाला जी की विवाह विल्लो पूनावाला जी के साथ हुआ था। जिनका की देहांत साल 2010 में हो गया था। वह अपने पत्नी के मृत्यु के बाद टूट से गए थे। जिनके की याद में उन्होंने आगे चलकर विल्लो पूनावाला फाऊंडेशन की स्थापना की।
जिसके द्वारा उन्होंने कई स्कूलों और अस्पताल खोलकर, कई गरीब लोगों की मदद की है। सतही में वह दुनिया की कई गरीब देश को मुफ्त में कई प्रकार की वैक्सीन प्रोवाइड करते हैं। जो कि अपने आप में बहुत ही बड़ी बात है। और ऐसे ही कई प्रकारके काम वह समाज के लिए करते हैं।
The great achievements
साइरस पूनावाला जी ने अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए बहुत ही मेहनत की। और साल 2011 में अपने सीईओ के स्थान से इस्तेमाल देकर, अपने बेटे अदार पूनावाला को नए सीईओ के रूप में नियुक्त किया।
आज तक उन्होंने पैसों के लिए किसी भी व्यक्ति या फिर कंपनी को उनके कंपनी के शेर और इक्विटी नहीं दिए। क्योंकि वह चाहते थे कि अपना व्यवसाय अपने हिसाब से कर सके, और उन्हें किसी भी व्यक्ति को जवाब देना ना पड़े ,और वह अपने निर्णय स्वतंत्र रूप से ले पाए।
साथही में वह संपूर्ण रूप से कर्ज मुक्ति कंपनी है। जो कि अपने आप में बोलते ही बड़ी बात है।
उन्हें दुनिया भर में वैक्सीन किंग के नाम से जाना जाता है। जो की नाम खुद बिल गेस्ट ने उनके दुनिया भर में वैक्सीन की क्षेत्र में दिए योगदान के देखते हुए दिया था।
सतही में भारत सरकार ने उन्हें साल 2005 में पद्मश्री पुरस्कार से, और 2022 में पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है, और आज तक ऐसे कई बड़े पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया है।
फोर्स 2022 के भारत के सबसे अमीर व्यक्ति के सूची में वह चौथे स्थान पर रहे। जिसमें उनकी कुल संपत्ति 24.3 बिलियन डॉलर बताई गई थी।
फोर्स 2024 के भारत के 100 सबसे दिग्गज उद्योग के सूची में वह नेवी स्थान पर रहे जिसमें कि उनकी कुल संपत्ति 24.5 बिलियन डॉलर बताई गई। जो कि भारतीय रुपए में 2 लाख करोड रुपए होती है।
आज साइरस पूनावाला जीकी उम्र 83 साल है, और वह अपनी कंपनी के अध्यक्ष और मैनेजिंग डायरेक्टर के स्थान पर कार्यरत है।
आज के समय वह अपने बेटे के परिवार के साथ 247 एकड़ में फैले 750 करोड रुपए के बड़े ही शानदार फार्म हाउस में, जो कि पुणे के पास स्थित है। वहां पर बड़ी शान से जीवन जी रहे हैं, सतही में वह बहुत ही शानदार और लग्जूरियस गाड़ी के कलेक्शन के मालिक भी है। यह कहानी थी साइरस पूनावाला जी की।
कंक्लुजन
साइरस पूनावाला जी की कहानी हमारे लिए बहुत ही प्रेरणादाई है। जिसमें हमने जाना कि कैसे वह घोड़े का व्यापार करते-करते इतने बड़े मुकाम पर पहुंच पाए।
आज हम सभी व्यक्तियों को उनका आभारी होना चाहिए, क्योंकि उन्हें के ही बदौलत हमें कई प्रकार की वैक्सीन इतनी आसानी से कम दाम पर मिल पाई, वरना हो सकता है कि अभी तक हम कोरोना जैसे कई गंभीर लोगों से जकड़े हुए होते। धन्यवाद
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