शुरुआती जीवन और शिक्षा
उनके इस कंपनी की शुरुआत भारत के आजादी से पहले होती है। जब उनका जन्म साल 1925 में गुजरात के भावनगर जिले के महुआ गांव के एक जैन परिवार में होता है। उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने गांव महुआ से पूरी की और आगे क्योंकि उनके दादाजी मजिस्ट्रेट थे, जिनसे प्रेरित होकर वह एलएलबी की पढ़ाई करने का निर्णय लेते हैं और मुंबई गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दाखिला लेते हैं।
जब वह अपनी लॉ की पढ़ाई कर रहे थे, इस दौरान उन्हें महात्मा गांधी जी द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन के बारे में पता चलता है। जिसमें भाग लेने के लिए वह अपनी पढ़ाई बीच में से छोड़कर गांव चले आते हैं और भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेते हैं।
इन सब के कुछ दिनों बाद वह यह सोचकर की बड़े पोस्ट पर होने से वह अपने लोगों की और भी अच्छी तरह से मदद कर पाएंगे, जिस कारन अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी करने का विचार उन्हें आता है, जिसके बाद वह फिर से मुंबई जाकर लॉ की पढ़ाई पूरी करने में लग जाते हैं। जिस दौरान उनका विवाह कांताबेन से किया जाता है।
Initial career
शादी हो जाने के बाद उनकी पत्नी कांताबेन उनके साथ में मुंबई आकर रहने लग जाती है। जिस कारण उन पर जिम्मेदारियां बढ़ जाती है और वह पढ़ाई के साथ ही में घर चलाने के लिए पार्ट टाइम नौकरी करने में लग जाते हैं। बावजूद इसके उन्हें अपने घर चलाने में पैसों की कमी और ऐसे ही कई समस्याओं का सामना करता पड़ता है। लेकिन वह अपने इस समस्याओं का सामना करते हुए आखिरकार अपनी लॉ की पढ़ाई पूरी कर लेते हैं और अपनी डिग्री प्राप्त कर लेते हैं।
इसके बाद अपने पति की डिग्री पूरी हो जाने के कांताबेन को लगने लगता है कि; अब बलवंत अपने वकालत के दम पर अच्छी कमाई कर पाएंगे और आखिरकार अब वह अपने जीवन को अच्छी तरह से जी पाएंगे।
लेकिन बलवंत अपने पढ़ाई के दौरान समझ जाते हैं की वकालत के पेशे में बहुत ही ज्यादा झूठ बोलना पड़ता है। और उन्हें झूठ बोलना बिलकुल भी पसंद नहीं था, जिस कारण वह कभी भी वकालत न करने का निर्णय लेते हैं। लेकिन आगे उनका यह निर्णय उनके लिए बहुत ही मुश्किलें लाने वाला था।
इसके बाद वह मुंबई में एक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने लगते हैं, बाद में वह इस नौकरी को छोड़कर लकड़ी के एक बहुत ही बड़े व्यापारी के पास चपरासी के तौर पर काम करने लगते हैं। इसी दौरान एक वक्त तो उन पर ऐसा भी आता है जब वह अपने कमरे का किराया न दे पाने के कारण उन्हें वहां से निकाल दिया जाता है, जिसके बाद उन्हें अपने पत्नी के साथ मिलकर जहां पर वह नौकरी किया करते थे, वहां के ही लकड़ी के गोदाम में रहना पड़ता है।
बावजूद इसके वह वकालत करके ज्यादा पैसे कमा कर अपने सभी समस्याओं को खत्म कर सकते थे। लेकिन वह अपने कभी भी वकालत न करने के निर्णय पर अटल रहते हैं। जिससे कि हमें उनके मानसिक बल के बारे में पता चलता है।
अवसर और व्यवसाय
इसी दौरान जब वह अपना काम कर रहे थे, तब वह फर्नीचर के निर्माण के दौरान आने वाली एक समस्या उन्हें नजर आती है। दरअसल वह समस्या थी लकड़ी को चिपकाने के इस्तेमाल होने वाला गोंद।
1. जिसमें पहले गोंद का प्रकार था जिसे की कारपेंटर लोग चावल और आटे को मिलाकर बनाए करते थे, जो की कागज और अन्य चीजों को तो अच्छे से चिपकाया करता था, लेकिन लकड़ी के चीजों को अच्छे से चिपकता नहीं था।
2.जो दूसरे प्रकार का गोंद था जिसे जानवरों के चर्बी से बनाया जाता था। यह गोंद लकड़ी को तो अच्छे से चिपक लेता था, लेकिन इसका इस्तेमाल बहुत ही ज्यादा मुश्किल हुआ करता था, जिस के जब भी इस्तेमाल की आवश्यकता पड़ती थी; तब इसे गर्म करना पड़ता था। जिस दौरान चर्बी का होने के कारण इसे बहुत ही ज्यादा दुर्गंध फैल जाती थी। और इसका इस्तेमाल कोई शाकाहारी व्यक्ति भी कर नहीं सकता था।
3.और जो तीसरे प्रकार का गोंद था। उसे विदेश से आयात करके भारत में लाना पड़ता था। जिस कारण वह बहुत ही महंगा हुआ करता था और उसे आम कारपेंटर खरीद नहीं सकते थे। इसका इस्तेमाल सिर्फ अमीर लकड़ी और फर्नीचर के व्यापारी ही किया करते थे।
इस समस्या को बलवंत किसी अवसर की तरह देख रहे थे। अब वह ऐसा गोंद बनाना चाहते थे जो कि अच्छा हो ताकतवर हो और आसानी से इस्तेमाल हो सके, लेकिन इसका निर्माण कैसे करना है यह उन्हें पता नहीं चलता है।
व्यवसाय की शुरुआत
इसी दौरान जब वह गोंद बनाने के व्यवसाय के बारे में सोच रहे थे, तब मोहन जो की एक निवेशक थे उनकी नजर बलवंत पर पड़ती है और वह बलवंत के क्षमता को समझ जाते हैं। जिसके बाद वह एक दूसरे से किसी अच्छे व्यवसाय के बारे में बात करने लगते हैं, इसी दौरान उन्हें आयात व्यवसाय (import business) के बारे में पता चलता है और वह साथ में मिलकर शुरुआती दिनों में पश्चिमी देशों से साइकिल, सुपारी और पेपर आदी चीजों का आयात भारत मैं आयात करने लगते हैं। जल्दी वह इस व्यवसाय से अच्छा मुनाफा कमा लेते हैं। और बलवंत सायन, मुंबई (sion, mumbai) में एक छोटा सा फाल्ट लेकर, अपने परिवार के साथ वहां पर रहने चले जाते हैं।
Pidilite industries
अब वह इस व्यवसाय में गहराई से काम करने लगे थे। जिस दौरान वह फेडको (fedco) कंपनी के साथ साझेदारी करते हैं। जोकि कंपनी हॉटेस्ट नमक जर्मन कंपनी के उत्पादों को विदेशों में बेचने के लिए, बीच में के व्यक्ति की तरह काम किया करती थी। यह बात 50 के दशक की है जब भारत का वस्त्र उद्योग क्षेत्र बड़े ही तेजी के साथ बढ़ रहा था, जिस कारण हॉटेस्ट कंपनी के द्वारा निर्मित डाय और अन्य उत्पाद भारत में बहुत ही बड़े पैमाने पर बेची जाते हैं, और यह कंपनी इससे बहुत ही ज्यादा मुनाफा कमाती है। जो की बलवंत के कारण ही संभव हो पता है। जिस कारण होचेस्ट कंपनी के मैनेजर डायरेक्टर उन्हें जर्मनी में आने के लिए आमंत्रित करते हैं।
उनके इस आमंत्रण को स्वीकारते हुए वह जर्मनी जाते हैं, और बलवंत वहां पर एक महीना रहते हैं। जहां पर रहते हुए वह उनके उत्पादन के नए और आधुनिक तकनीक के बारे में समझते हैं, जिस दौरान उन्हें पता चलता है कि; वह हॉटेस्ट कंपनी एक ऐसे गोंद का निर्माण कर रही है, जो की इस्तेमाल करने में बहुत ही आसान होने के सतही बहुत सस्ता भी है। जिसका की नाम मूवीकॉल (movicoll) था। अब उन्हें ऐसा लगने लगता है कि भारतीय लकड़ी कारीगरों को सस्ता और अच्छा गोंद देकर, वह अपना पहले वाला सपना पूरा कर पाएंगे।
लेकिन अब वह इस व्यवसाय के बारे में गहराई से सोचने लगते हैं, तब उन्हें पता चलता है कि इस गोंद को जर्मनी से भारत में आयात करने पर इसकी कीमत बहुतही ज्यादा बढ़ जाएगी, जिस कारण कोई भी आम कारपेंटर इसे खरीद नहीं पाएगा।
यह बात साल 1954 की है जब वह मूवीकोल गोंद की निर्माण प्रक्रिया को समझकर भारत लौटते हैं। इसके बाद वह अपने भाई सुशील के साथ मिलकर, मुंबई में जैकोप सर्किल पर एक जगह लेकर, पारेख डायकेम इंडस्ट्रीज की स्थापना करते हैं। जहा पर वह मूवीकोल के जैसे ही गोंद का निर्माण करते हैं, जिसका की नाम वह फेविकोल रखते हैं। और यहा से ही पिडीलाइट इंडस्टरीज के कहानी की शुरुआत होती है।
आज भले ही फेविकोल हर भारतीय व्यक्ति की पहली पसंद बन गया है। लेकिन शुरुआत से ऐसा नहीं था, जैसे- तैसे वह फेविकोल का निर्माण तो कर लेते हैं। लेकिन उन्हें फेविकोल को बेचने के लिए कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। क्योंकि फेविकोल कोई खरीदता ही नहीं था, जिसका कारण यह था कि आम कारपेंटर का जानवरों के चर्बी के गोंद पर ज्यादा विश्वास हुआ करता था, और वह सोचते थे कि फेविकोल इतने अच्छे तरह से लकड़ी को चिपका नहीं पाएंगे और अमीर लकड़ी और फर्नीचर के व्यापारी इसी कोई सस्ता और लोकल गोंद समझकर खरीदने नहीं थे।
वह इस समस्या को खत्म करने के लिए जमीनीस्तर (ground Laval) पर काम करने लगते हैं। जैसे कि वह एक स्थान पर सभी कार्पेंटरों को एकत्रित किया करते थे, और उन्हें फेविकोल के बारे में जागृत किया करते थे, और सतही में वह फेविकोल को फ्री में इस्तेमाल करने का मौका भी दिया करते थे। इसके बाद जब कारपेंटर फेविकोल का इस्तेमाल करते हैं, तब वह इसके क्षमता को देखकर हैरान हो जाते हैं। जिस कारण वह अपने समस्याओं को खत्म करते हुए लोकप्रिय होने लगते हैं।
यह बात साल 1996 की है। जब बलवंतजी के छोटा भाई नरेंद्र पारेख US से अपनी पढाई पूरी करने के बाद, अपने भाई के व्यवसाय को जुड़ जाते हैं। जिसके बाद वह अपने कंपनी का नाम पारीक डाइकिन इंडस्ट्रीज से बदलकर पिडीलाइट इंडस्टरीज (pidilite industries) कर देते हैं।
Research and solution
जब वह फेविकोल की प्रतिक्रिया कारपेंटर से ले रहे थे। तब उन्हें पता चलता है, कि फेविकोल जरा सा भी गर्मी बढ़ जाने पर अच्छे से काम नहीं करता है। जिस कारण इस समस्या को खत्म करने के लिए है वह खुद से करोड रुपए खर्च करके, कंपनी के खुद के रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट विभाग की स्थापना करते हैं। जिससे कि वह फेविकोल के फार्मूले में बदलाव करके फेविकोल मरीन, फेविकोल हीटेक्स, फेवीक्विक जैसे कई फेविकोल के प्रकार बाजार में उतरते हैं। जो की अलग-अलग समस्याओं को देखते हुए बना दिए गए थे।
इसी दौरान उनकी मांग बहुत ही ज्यादा बढ़ जाती है और उनकी सफलताओ को देखते हुए, कई धोखेबाज व्यक्ति नकली फेविकोल बनाकर बाजार में बेचने लगते हैं। जिस कारण बाजार में फेवीकॉल का नाम खराब हो रहा था। जो कि उनके लिए बहुत ही बड़ी समस्या बन जाती है। जिस कारण वह पुलिस के मदद से इन पर कार्यवाही करते हुए; उनके सभी फर्जी अड्डों को बंद करने लग जाते हैं और ग्राहकों में असली फेविकोल के पहचान के लिए जन जागृति अभियान भी चलाते हैं।
वह अपनी इन्हीं सब कदमों से अपनी इन समस्याओं को खत्म करते हुए, फिर से ग्राहकों का विश्वास जीतने में सफल रहते हैं।
यह बात साल 2002 की है। जब वह फेविकोल चैंपियंस क्लब की स्थापना करते हैं। जिससे वह कार्पेंटर्स को मुफ्त में ट्रेंनिंग सेशंस और औजार बांटते हैं। आज के समय उनके भारत के 145 शहर में उनके 380 से भी अधिक क्लब है, जिसमें 40 हजार से अधिक कारपेंटर सदस्य हैं। इन्हीं सब कारनो की वजह से आज भी वह लोगों के दिलों पर राज करते हैं।
Expansion
यह बात साल 2000 की है। जब उनके ग्राहक सिर्फ कारपेंटर थे और वह सिर्फ फेविकोल के कुछ प्रकार ही बेच रहे थे। तब बलवंत सोचते हैं कि एक ही उत्पाद और ग्राहक पर निर्भर रहना, उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। जिस कारण अब वह अपनी निर्भरता फेवीकॉल से हटाना चाहते थे, जिस कारण वह सबसे पहले एम-सील ब्रांड को खरीद लेते हैं।
यह बात साल 2004 की है जब वह घर में स्टाइल चिपकाने के लिए इस्तेमाल होने, वाला रॉफ (Roff) ब्रांड को खरीद लेते हैं।
और ऐसे ही वह फेवीकॉल के छोटे पैक को भी बनाते हैं, जिस की स्कूल प्रोजेक्ट में इस्तेमाल किया जा सके।
इसी तरह कदम उठाते उठाते, आज के समय पिडीलाइट ग्रुप के पास 20 से भी अधिक ब्रांड है, जिसके द्वारा वह दुनिया भर के 70 से भी अधिक देशों में अपने छोटे बड़े 6500 से भी अधिक उत्पाद बेचते हैं। जिसके लिए देश-विदेश में उन्होंने 8 से भी ज्यादा बड़े-बड़े मैन्युफैक्चरिंग प्लांट का निर्माण किया है। जिस्में की US और सिंगापुर भी आते हैं। इन्हीं सब कारणों की वजह से आज के समय भारतीय बाजार में उनकी हिस्सेदारी 70% जितनी है। जो कि अपने आप में बहुत ही बड़ी बात है और इसी कारण वह हर भारतीय के दिल में एक विशेष स्थान प्राप्त करने के लिए सफल रहे हैं।
The great achievement
यह बलवंत पारेख जी के इन खास कदमों का ही नतीजा है, कि आजके समय उनकी कंपनी की कुल संपत्ति 1 लाख 40 हजार करोड़ जितनी है।
क्योंकि वह फेवीकॉल के निर्माता है, जिस कारण उन्हें फेविकोल मैन भी कहा जाता है।
सतही में वह धीरूभाई अंबानी जी के खास दोस्त भी हुआ करते थे, और वह चार्मीकल रोड मुंबई पर के एकही बिल्डिंग के अलग-अलग में अपार्टमेंट में रहा करते थे।
लेकिन यह बड़े ही अफसोस की बात है, कि 2 जनवरी 2013 में 88 साल की उम्र में वह हम सब में से चल बसे, बावजूद आज भी उनके उत्पादन सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, और हर जगह पर इस्तेमाल किए जाते हैं। यह कहानी थी बलवंतराय पारीक जी की ।
कंक्लुजन
बलवंत पारेख जी को भले ही अपने करियर की शुरुआत में बहुत ही ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ा हो। लेकिन उन्होंने अपने सूझबूझ और मेहनत से पिडीलाइट इंडस्टरीज को बहुत ही उच्च स्थान पर पहुंचाकर, यह साबित कर दिया है, कि कोई भी बड़ा ब्रांड इनोवेशन मार्केटिंग और मेहनत के दम पर आसानी से लोगों के दिलों पर राज कर सकता है । भले ही आज वह हम लोगों के बीच में उपस्थित ना हो। लेकिन वह सदियों तक युवाओं के लिए प्रेरणा स्थान बने रहेंगे। धन्यवाद
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