Larry Page biography: जानिए किस तरह गरज से शुरुआत कर गूगल को बनाई दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी


इंट्रोडक्शन 
आज के समय जब भी हमें किसी सवाल का जवाब या किसी चीज के बारेमे जानकारी चाहिए होता है, तब हम सबसे पहले गूगल पर ही जाते हैं। आज के समय दुनिया का गूगल दुनियां का सबसे बड़ा सर्च इंजन बन गया है। जीन के मैप्स और जीमेल जिसे कई उत्पादों का इस्तेमाल हम हर दिन करते हैं, जिस कारन वह दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि, गूगल की शुरुआत किस तरह हुई होगी और वह कैसे इतने बड़े मुकाम पर जा पहुं९चा है ? तो चलिए जानते है। 

दरअसल गूगल का आविष्कार लैरी पेज ने सर्गेई ब्रेन के साथ मिलकर किया था। जब वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी की पढ़ाई कर रहे थे, पेज अपने आविष्कार के प्रति बहुत ही ज्यादा जुनूनी थे, जिस कारण वह अपने इस आविष्कार के पछे बहुत ही ज्यादा मेहनत करते हैं, और गूगल की नींव रखकर, उसे बहुत ही सफल कंपनी में बदल देते हैं। साथ ही में उन्होंने आज के समय दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला एंड्राइड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम का विकास किया है, जो मोबाइल डिवाइस पर ऐप्लिकेशन और प्रोग्राम चलाने में मदद करता है, जिससे कि दुनिया भर में ज्यादातर लोग मोबाइल का इस्तेमाल कर पा रहे हैं। यह उनके जीवन भर के मेहनत और संघर्ष का ही नतीजा है कि, एक सामान्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद वह दुनिया के आठवें सबसे अमीर व्यक्ति के स्थान पर जा पहुंचे हैं। उनके इस अनोखे और मजेदार सफर के बारे में जानने के लिए आगे पढ़िए...

शुरुआती जीवन
लॉरेंस एडवर्ड पेज ( लैरी पेज ) का जन्म 26 मार्च 1973 को मिशिगन के लैसिंग में हुआ था। उनके पिता कार्ल पेज ने कंप्यूटर विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की थी, और वह मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर थे। उनकी मां ग्लोरिया लाइमैन ब्रिग्स कॉलेज में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की प्रशिक्षक थी। 

उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया है कि, बचपन में आमतौर पर उनका घर अवस्थित रहता था, जहां पर हर जगह कंप्यूटर विज्ञान और टेक्नोलॉजी की मैगजीन और लोकप्रिय साइंस मैगज़ीन बिखरी हुई रहती थी। यह उनके लिए ऐसा वातावरण था जिसमें कि उन्होंने खुद को डूबा लिया, और अक्सर वह इन मैगजीनो पढ़ा करते थे, जिस कारण बचपन से ही उनकी कंप्यूटर के क्षेत्र में रुचि (इंटरेस्ट) बढ़ने लगी। 

उनकी स्कूली पढ़ाई तभी शुरू हो गई थी, जब उनका दाखिल 2 साल की उम्र में मिशिगन के केमोस में स्थित ओकेमोस मोंटेसरी स्कूल में कर दिया जाता है। 

जब वह 6 साल के थे, तब वह अपने माता-पिता द्वारा छोड़े गए फर्स्ट जेनरेशन पर्सनल कंप्यूटर के साथ खेला करते थे। वह बचपन से ही इस चीज को जानने में उत्सुक थे कि, कैसे कोई चीज काम करती है। आगे उनके बड़े भाई कार्ल पेज ने उन्हें चीजों को अलग करना सिखाया, इसके बाद तो वह अपने घर में हर चीजों को अलग करने लगे जिससे कि वह जान पाए की वह चीज कैसे काम करती है। वह अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि, उन्हें तभी एहसास हो गया था कि "मैं आगे चलकर किसी चीज का आविष्कार करूंगा"और शायद जब मैं 12 साल का था तब से मुझे यह पता चल गया था कि "मैं अंततः कोई कंपनी ही स्थापित करूंगा"

यह बात 1979 की है। जब वह अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ईस्ट लेसिंग हाई स्कूल में दाखिला लेते हैं। जहां से उन्होंने साल 1991 में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने उल्लेख किया है कि, अपने हाई स्कूल के पढ़ाई के दौरान गर्मियों के दिनों में बांसुरी और अन्य इंस्ट्रूमेंट ओर संगीत की पढ़ाई की, ओर उनके संगीत के शिक्षा ने ही कंप्यूटिंग में स्पीड के प्रति उनके जुनून को प्रेरित किया, वह कहते हैं कि "संगीत प्रशिक्षण ने मेरे लिए गूगल की हाई स्पीड विरासत को जन्म दिया"।

वह अपने किशोरावस्था में मैगजीन और किताब पढ़ने पर अपना बहुत समय बिताते थे। यह बात साल 1995 की है। जब पेज ने मिशिगन विश्वविद्यालय से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की। और आगे साल 1998 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से कंप्यूटर साइंस में मास्टर की डिग्री प्राप्त की। 

पीएचडी की पढ़ाई, शोध और आविष्कार 
अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी करने के बाद वह स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में कंप्यूटर साइंस में पीएचडी प्रोग्राम में दाखिला लेते हैं, ओर पीएचडी के शोध विषय के तौर पर "वर्ल्ड वाइड वेब" को चुनते हुए दुनिया भर में सभी वेबसाइट एक दूसरे से कैसी जुड़ी हुई है इस चीज को समझाने पर विचार करते हैं। 
जिस दौरान उनके पर्यवेक्षक (supervisor) टेडी विनोगार्ड उन्हें इस विचार को आगे बढ़ाने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रेरित करते हैं, आगे चलकर उनकी यह सलाह पेज के जीवन की सबसे अच्छी साल हा बनने वाली थी।

उस समय के सर्च इंजन बहुत ही अलग तरह से काम कीया करते थे, जब भी कोई व्यक्ति किसी चीज के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु से सर्च किया करता था, तब उसके सामने कई सारी वेबसाइट की सूची आती थी, जिसमें से सही वेबसाइट पर क्लिक कर सटीक जानकारी मिल पाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल था। इस चीज को समझते हुए, पेज इस समस्या पर अपनी रिसर्च शुरू कर देते हैं, जिसका की नाम वह "ब्लैकरब (BLACKRUB)" रखते हैं। जिसमें की जल्द ही स्टैनफोर्ड में PHD के एक और विद्यार्थी सर्गेई ब्रेन भी जुड़ जाते है।

इस जोड़ी का मिशन दुनिया की अस्त व्यस्थ जानकारी को व्यवस्थित करके ऐसा सर्च इंजन बनाना था, जो की उसे वक्त के सर्च इंजनो के तुलना में बहुत ही अच्छा, तेज चलता ओर सटीक जानकारी देता हो। 

"जब पेज ने ब्लैकरब की कल्पना की, तब अनुमान है कि वेब में एक करोड़ द डॉक्यूमेंट थे, जिसमें जिनके बीच में अनगिनत लिंक थे, इस तरह के जानकारी को व्यवस्थित करने के लिए आवश्यक कंप्यूटर इन संसाधन एक छात्र की सामान्य सीमाओं से बहुत पैर थे। पेज को यह पता नहीं था कि वह वास्तव में क्या करने जा रहे हैं"।

सर्च इंजन का विकास 
एक उपयुक्त और तेज सर्च इंजन बनाने के लिए वह सबसे पहले, वेबसाइट से जानकारी को इकट्ठा करते हैं, और उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) को सही जानकारी मिले इस हेतु से यह जोड़ी "पेजरैंकिंग एल्गोरिथम" को विकसित करते हैं करते हैं। जिससे जब भी कोई व्यक्ति इस सर्च इंजन पर, किसी चीज को सर्च करता था, तब वेबसाइट्स की सूची वही वेबसाइट सबसे ऊपर दिखा करती थी जिसकी जानकारी सबसे सटीक और बैकलिंक सबसे अच्छी हुआ करती थी, यह एल्गोरिथम उसे वक्त के हिसाब से बहुत ही ज्यादा उपयुक्त था। 

यह बात साल 1996 की है। जब अपने विचारों को मिलते हुए इस जोड़ी ने पेज के हॉस्टल रूम को एक मशीन लैब में बदल दिया, जिसमें कि उन्होंने सस्ते कंप्यूटर से स्पेयर पार्ट्स को निकालकर एक ऐसा उपकरण बनाया, जिसका उपयोग उन्होंने इस नए सर्च इंजन को स्टैनफोर्ड के कैंपस नेटवर्क से जोड़ने के लिए किया। पेज का रूम उपकरणों से भरने के बाद उन्होंने ब्रेन के हॉस्टल रूम को एक कार्यालय और प्रोग्रामिंग सेंटर में बदल दिया। जहां से वह अपने सर्च इंजन के डिजाइन का परीक्षण किया करते थे। उनके प्रोजेक्ट को तेजी से विकसित करने के कारण स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर में समस्याएं आने लगी थी, बावजूद इसके वह रुकते नहीं है। 

यूजर्स द्वारा किए गए सच को संभालने के लिए आवश्यक कंप्यूटिंग पावर को इकट्ठा करने के लिए, वह किसी भी कंप्यूटर के स्पेयर पार्ट को निकल कर इस्तेमाल करना शुरू कर देते हैं। यह उनके इन्हीं सब कदमों का, सूझबूझ और मेहनत का नतीजा होता है कि, उनका यह सर्च इंजन स्टैंडफोर्ड के विद्यार्थियों में लोकप्रिय होने लगता है, जिस कारन उन्हें अतिरिक्त सर्वर की आवश्यकता पड़ती है।

यह बात साल 1998 की है। जब उनके सर्च इंजन पर हर दिन 10,000 सच होने लगे, जिससे आखिरकार पेज को उनके सर्च इंजन के क्षमता पता चलता है और वह अपने सर्च इंजन को और भी विकसित करते हुए, उसे ऊंचे स्तर पर ले जाने के बारे में सोचते हैं। जिसमें कि उन्हें बहुत सारे पैसे की आवश्यकता होती है। आगे यह जोड़ी अपने परिवार और मित्रों से पैसों की मांग करते हुए, जल्द ही $1 लाख से अधिक पैसा जुटा लेते हैं। जिससे कि वह कुछ सर्वर खरीदने के साथ ही मेनलो पार्क में स्थित एक दोस्त के गराज को किराए पर लेते हैं, जहां से कि वह अपने सर्च इंजन के कार्य को आगे बढ़ते हैं। 

साल 1998 में वह अपने इस सर्च इंजन को व्यावसायिक तौर पर आगे बढ़ाने के हेतु से, Google inc. कंपनी की स्थापना करते हैं, और यहां से ही गूगल कंपनी के कहानी की शुरुआत होती है। दरअसल गूगल नाम उन्होंने गणित के गूगोल शब्द से लिया था, जिसका अर्थ एक के पीछे जो शून्य होता है, जो कि उनके पास के बड़ी मात्रा में डाटा को दर्शाता है। कंपनी की शुरुआत के वक्त पेज ने अपने आप को सीईओ के रूप में नियुक्त किया, जबकि ब्रेन गूगल के अध्यक्ष बने।

2000 - 2011
गूगल से सबसे सटीक और तेजी से जानकारी मिलने के कारण यह बड़े ही तेजी के साथ लोकप्रिय होने लगे, गूगल ने साल 2000 तक एक बिलियन इंटरनेट यूआरएल को अनुक्रमित कर दिया था, जिससे कि गूगल उसे समय वेब पर सबसे बड़ा सर्च इंजन बन गया

यहबात साल 2001 की है। जब सिलिकॉन वैली के दो सबसे प्रमुख निवेशक क्लीनर पर्किंस और सीखोया कैपिटल गूगल में 50 मिलियन डॉलर निवेश करने के लिए राजी होने से पहले पेज पर सीईओ के पद को छोड़ने के लिए दबाव बनाते हैं, जिससे कि वह किसी अनुभवी व्यक्ति को सीईओ बन सके। उसे वक्त पेज टेक्नोलॉजी क्षेत्र के कई अन्य CEOs के साथ बातचीत करते हैं, जिससे कि वह आखिरकार सीईओ के पद से हट जाते हैं। इसके बाद एरिक श्मिट को गूगल के नए सीईओ के रूप में नियुक्त किया गया, इस बावजूद पेज कर्मचारियों के नजर में बॉस बने रहे और श्मिट को जब भी कंपनी में कोई बड़ा निर्णय लेना होता था, तब वह पेज की आखिरी अनुमति लिया करते थे। यह पेज ही थे जिन्होंने साल 2005 मे आईपीओ के लिए हस्ताक्षर प्रदान किया थे, इसके बाद वह 30 साल की उम्र में अरबपति बने।

पेज साल 2005 में $50 मिलियन मैं एंड्राइड का अधिग्रहण करते हुए उसका नियंत्रण अपने पास ले लेते हैं। क्योंकि वह चाहते थे कि हर व्यक्ति अपने छोटे कंप्यूटर यानी कि मोबाइल मोबाइल से कहीं भी गूगल का इस्तेमाल कर सके, जिस कारण वह अपने इस विचार के पीछे बहुत ही ज्यादा जुनून से मेहनत करते हैं, और एंड्रॉयड को विकसित करते हैं।

इसी दौरान उनकी मुलाकात रिसर्च साइंटिस्ट लुसिंडा साउथवर्थ से होती है, इसके बाद आगे चलकर वह 2007 में एक दूसरे से विवाह कर लेते हैं। जिससे कि उन्हें दो बच्चे होते हैं।

सितंबर 2008 तक टी- मोबाइल कंपनी एंड्राइड सॉफ्टवेयर का उपयोग करने वाला पहला फोन G1 लॉन्च करती हैं। यह जानकर आप हैरान हो जाएंगे की साल 2010 आते-आते एंड्राइड पास बाजार का 17.2 % हिस्सा आ जाता है, जिससे की उन्होंने पहली बार एप्पल को पीछे छोड़ दिया था। इसके तुरंत बाद एंड्रॉयड दुनिया का सबसे लोकप्रिय मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम बन जाता है।

यह बात साल 2011 की है जब एंड्रॉयड के सफलता को देखते हुए, पेज को फिर से गूगल CEO के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की जाती है, और 4 अप्रैल 2018 को पेज को आधिकारिक तौर पर गूगल सीईओ के तौर पर नियुक्त किया जाता है। उस समय गूगल का मार्केट कैप यानी कि बकाया शेयर मूल्य 180 बिलियन डॉलर से अधिक था, 24,000 से अधिक कर्मचारी गूगल में कार्यरत थे, और पिछले दशक में गूगल ने जीमेल और युटुब जैसे कई उत्पाद बाजार में लाए थे। 

विस्तार और बदलाव 
सीईओ के तौर पर पुनः नियुक्त होने के बाद, पेज गूगल में चल रही कई गलत चीजों को सही करने में अपना समय लगते हैं, और साथ ही में कई उत्पादों को लॉन्च करते हुए गूगल का विस्तर करते हैं। वह बताते हैं कि उन्हें जब भी किसी उत्पाद को बाजार में लाना होता था, तब वह देखा करते थे कि क्या कोई व्यक्ति इस उत्पाद को अपने दिनभर में कम से कम दो बार इस्तेमाल करेगा ? यह सोचने के बाद ही वह उत्पादों को बाजार में लाते थे। 

पेज गूगल के द्वारा 2012 में क्रोमबुक लैपटॉप को लांच करते हैं, जिससे कि वह हार्डवेयर के क्षेत्र में भी अपना कदम रखते हैं। 

यह बात में 2013 की है, जब सैन फ्रांसिस्को में डेवलपर समिट में, पेज एक मुख्य भाषण देते हैं, जिसमें वह कहते हैं कि हम जो संभव है, उसका शायद 1% ही कर पा रहे हैं। तेजी से हो रहे बदलाव के बावजूद, हम अब भी अपने पास मौजूद अवसरों के बावजूद बहुत ही काम गति से आगे बढ़ पा रहे हैं। जिसका उन्होंने कारण नकारात्मकता बताया था। उनके इस विचार से हमें उनके बड़ी सोच के बारे में पता चलता है।

अब तक उनकी संपत्ति यह तक बढ़ जाते हैं कि, जुलाई 2014 को ब्लूमबर्ग बिलेनियर इंडेक्स उन्हें दुनिया के 17वें सबसे अमीर व्यक्ति के तौर पर नामांकित करते हैं। जिसमें कि उनकी संपत्ति 32.7 बिलियन डॉलर बताई जाती है। 
और इसी साल फॉर्च्यून मैगजीन उन्हें "बिजनेस पर्सन ऑफ द ईयर" के तौर पर सम्मानित करते हैं।

Alphabet Inc. 
यह बात साल 2015 की है। जब गूगल की पुनः रचना करने के हेतु से, और गूगल को मुख्य सर्च व्यवसाय से बाहर निकालने के हेतु से पेज ओर ब्रेन के साथ मिलकर अल्फाबेट इंक कंपनी की स्थापना करते हैं। जिससे कि वह अपने कंपनी को और भी स्वच्छ, सुव्यवस्थित और अपने निवेशक और ग्राहकों के प्रति अधिक जवाबदेह हुए।

इसी के साथ पेज अपने गूगल के सीईओ के पद को छोड़ देते हैं, और अल्फाबेट के सीईओ बन जाते हैं। और भारतीय मूल के सुंदर पिचाई को गूगल के सीईओ के रूप में नियुक्त किया जाता है। 

दरअसल अल्फाबेट एक ऐसी कंपनी है, जो गूगल और उसके अन्य उत्पाद और सहायक कंपनियों पर नियंत्रण रखती है। जिस कारण उसे गूगल के पैरंट (मूल) कंपनी के तौर पर जाना जाता है।

2019 से अबतक
दिसंबर 2019 में लैरी पेज ऐलान करते हैं, कि वह अपना अगला कदम रखते हुए अल्फाबेट के सीईओ के पद से इस्तीफा दे रहे हैं। इसके बाद गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई को अल्फाबेट के सीईओ बन जाते हैं।

अगर आज की बात की जाए तो, गूगल के 50 से अधिक उत्पाद बाजार में है, जिससे कि अल्फाबेट की मार्केट कैप 1.89 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। जो की अल्फाबेट को दुनिया की सबसे मूल्यवान कंपनी मे से एक बनाती है। 

अगर फोर्ब्स के माने तो वह मुकेश अंबानी के बाद दुनिया के दसवें सबसे अमीर व्यक्ति है, जिसमें कि उनकी संपत्ति $114 बिलियन बताई गई है। जो कि अपने आप में बहुत ही बड़ी बात है। यह कहानी थी लैरी पेज की।

कंक्लुजन (conclusion) 
लैरी पेज का जन्म भलेही एक सामान्य परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने असामान्य क्षमताओं से गूगल जैसे क्रांतिकारी सर्च इंजन का निर्माण किया। और एंड्राइड मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम से मोबाइल के क्षेत्र में बहुत ही बड़ी क्रांतिलाई। आज उनकी बदौलत हम में से ज्यादातर लोग मोबाइल का इस्तेमाल और आसानी से जानकारी प्राप्त कर पा रहे हैं, उनके यही सब कदम उन्हें एक महान व्यक्ति बनाते हैं। उनका फर्श से अर्श तक का यह सफर अपने आप में बहुत ही ज्यादा प्रेरणादाई है, और उनके इस कहानी को हर उसे व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जो अपने जीवन में कोई महान कार्य करना चाहता है। धन्यवाद....



















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